इस कलियुग में आज हर व्यक्ति यान्त्रिक हो चुका है, जैसा कि ज्ञातव्य है आज का परिवेश पूर्ण रूपेण पाश्चात्यशैली विचारधाराओं से युक्त है; ऐसे में हमारी भारतीय सँस्कृति व सनातनी सभ्यता के दृष्टिकोण में धार्मिक वातावरणों जैसे:- शुभ कर्म, पूजा-पाठ, भजन-सन्ध्या, कर्मकाण्ड आदि की वैदिक रीतियों, ज्योतिषीय नीतियों का सम्पादन तथा योग व आध्यात्म जैसे विषयों का चिन्तन अथवा परिचलन बहुतायत प्रभावित है, जिसका कारण लोगों की धर्म-कर्म के प्रति भारी उदासीनता है! आज हमारे भारतवर्ष में आधुनिक परिस्थितियों के चलते अधिकाँश आबादी हमारे सत्य सनातन धर्म-सँस्कृति-परम्परा व रीति-रिवाजों आदि की उपयोगिता तथा उनके महत्व के जानकारियों से सर्वथा अनभिज्ञ है! वैसे देखा जाए तो हमारे यहाँ "जन्म से लेकर मृत्यु" पर्यन्त सोलह सँस्कारों का समुचित वर्णन है परन्तु फिर भी इनमें से बमुश्किल दो ही सँस्कारों का निर्वहन "विवाह व अन्त्येष्टि" जो कि इसे भी आधे-अधूरे ढंग से सम्पन्न किया जाता है, जिससे यह प्रतीत होता है कि इस व्यवस्था से हमारा हार्दिक लगाव या नाता स्पष्ट रूप से नहीं है! यह अपरिचित स्वभाव ही हमारी समस्या का मूल केन्द्रबिन्दु है जिसका "निराकरण व निवारण" करना बहुत ही आवश्यक है! ठीक इसी प्रकार से अग्रिम कड़ी में फिलहाल यहाँ पर गौर किया जाये तो किसी ब्राह्मण को यजमान नहीं मिल पा रहे हैं, तो कहीं किसी यजमान को सुयोग्य आचार्य ढूँढ़ने से भी नहीं मिल पा रहे हैं, जिसकी वजह से कुछ पुरोहितों की आजीविका अच्छी या सामान्य है, तो कुछ की आय कदाचित औसत ही है; वहीं दूसरी तरफ बहुत से दक्षता सम्पन्न पण्डितों को अपना दैनिक जीवन घोर अभावों में गुजारना पड़ रहा है! जिसका एकमात्र कारण रोजमर्रा के वैयक्तिक जीवन में धार्मिक वातावरणों के प्रति रुचि का ना होना तथा अपने सँस्कारों का धरातल पर व्यवहारिक प्रचलन में ना होना ही है! अतः ऐसी स्थिति में आज के इस यान्त्रिक दौर में हमारी प्राचीन सँस्कृति और परम्परा को डिजिटल क्रान्ति का हिस्सा बनकर समाज के मध्य में उपस्थित होना होगा!