हमारी सँस्था से सम्बन्धित इस दिशाक्षेत्र के "कार्य" सर्वप्रथम यह हैं कि अपने देश और समाज के समस्त सनातनी धर्मावलम्बियों को एक तरफ से जोड़ना, चाहे वो कोई भी व्यक्ति हो "निम्नस्तरीय अथवा उच्चस्तरीय"; इन्हें हम याज्ञिक यजमान के रूप में जोड़ेंगे, इसके बाद हर प्रकार के सम्मानित गणमान्य विद्वतविज्ञ जैसे:- पण्डित, पुरोहित, ब्राह्मण, आचार्य तथा मर्मज्ञ कर्मकाण्डी व ज्योतिर्विद आदि सज्जनों को जोड़ते हुए इन्हें सामूहिक मञ्च पर लाकर इस गरिमामयी विधा के माध्यम से उनकी नैमित्तिक आय भी निश्चित रूप से सुदृढ़ करना है जिससे इस कार्य में "सरलता, सहजता व निरन्तर तरलता" बनी रह सके, ब्राह्मण और यजमान के बीच की मानसिक दूरी को कम करते हुए इस गौरवशाली सम्बन्द्ध को वैश्विक स्तर पर निरन्तरतापूर्ण ढंग से सुस्थापित करना जिससे आचार्यों की नित्यप्रति दैनिक आजीविका निर्बाध रूप से जीवन पर्यन्त सञ्चालित होती रहे तथा यजमानों का सतत उपभोक्ता स्वरूप पुण्यलाभ का अभ्यास भी बना रहे!!.